फरीदाबाद (हरियाणा) — हाल ही में लाल किले के पास हुए धमाके में 13 लोगों की मौत के बाद अब प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने फरीदाबाद स्थित अल-फलाह यूनिवर्सिटी के आर्थिक व संस्थागत संबंधों की जांच शुरू कर दी है। यह जांच उन व्यक्तियों से जुड़े संभावित वित्तीय संबंधों को लेकर की जा रही है, जिन्हें इस धमाके के मामले में गिरफ्तार किया गया है।
अधिकारियों के अनुसार, अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़े तीन डॉक्टरों को हिरासत में लिया गया है, जिनमें सहायक प्राध्यापक डॉ. उमर नबी भी शामिल हैं। बताया जा रहा है कि वही डॉक्टर उस हरियाणा रजिस्ट्रेशन वाली कार को चला रहे थे जिसमें विस्फोट हुआ था।
अल-फलाह यूनिवर्सिटी एक निजी संस्था है, जो हरियाणा प्राइवेट यूनिवर्सिटीज एक्ट के तहत स्थापित की गई है। विश्वविद्यालय के परिसर में मेडिकल कॉलेज और अस्पताल भी संचालित होते हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक बयान जारी कर कहा है कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इस मामले में जांच एजेंसियों के साथ पूर्ण सहयोग कर रहा है ताकि निष्पक्ष जांच हो सके।
सूत्रों के मुताबिक, हिरासत में लिए गए तीनों डॉक्टर विश्वविद्यालय के मेडिकल विभाग से जुड़े हैं और पहले भी उनसे उनके पेशेवर एवं वित्तीय संबंधों को लेकर पूछताछ की जा चुकी है।
अधिकारियों का कहना है कि प्रारंभिक जांच में संस्थानिक नेटवर्क के दुरुपयोग के संकेत मिले हैं, जिसके चलते ईडी ने फंडिंग पैटर्न और संभावित बाहरी संबंधों की जांच शुरू की है।
हालांकि, विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन आरोपों को संपूर्णतः निराधार और भ्रामक बताया है। अपने आधिकारिक बयान में विश्वविद्यालय ने कहा कि “संस्थान का कोई भी संसाधन अनुचित तरीके से इस्तेमाल नहीं किया गया है। हम कानून पर पूर्ण विश्वास रखते हैं और सच्चाई सामने आने तक जांच एजेंसियों को पूरा सहयोग दे रहे हैं।”
विश्वविद्यालय ने यह भी कहा कि वह एक शैक्षणिक और स्वास्थ्य सेवा केंद्र के रूप में अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और बिना प्रमाण के लगने वाले आरोप उसके नाम को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
सोमवार को हुए इस उच्च तीव्रता वाले धमाके ने लाल किले के पास खड़ी एक कार को चपेट में ले लिया था। पुलिस ने कुछ ही घंटे पहले एक “व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल” के भंडाफोड़ की घोषणा की थी। इस घटना में 13 लोगों की मौत और कई घायल हुए। अब तक आठ लोगों को हिरासत में लिया गया है, जिनमें अल-फलाह यूनिवर्सिटी से जुड़े तीन डॉक्टर भी शामिल हैं।
अधिकारियों ने बताया कि ईडी की यह जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की जांच के समानांतर चलेगी, जिसमें धन के प्रवाह और पूरे ऑपरेशनल नेटवर्क की तह तक जाने की कोशिश की जाएगी।
फिलहाल किसी भी संस्थागत स्तर पर प्रत्यक्ष संलिप्तता की पुष्टि नहीं हुई है। जांच एजेंसियों का कहना है कि जांच से यह स्पष्ट होगा कि क्या विश्वविद्यालय के संसाधनों या नेटवर्क का उपयोग अवैध गतिविधियों के लिए किया गया था।
इस बीच, सिविल राइट्स संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चिंता व्यक्त की है कि बिना ठोस सबूत के मुस्लिम शैक्षणिक संस्थानों और पेशेवरों को निशाना बनाए जाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) और यूनाइटेड अगेंस्ट हेट से जुड़े सदस्यों ने कहा कि जांच पारदर्शी और साक्ष्य-आधारित होनी चाहिए तथा बिना प्रमाण के बनाई जाने वाली सार्वजनिक कथाओं से समुदाय विशेष को कलंकित नहीं किया जाना चाहिए।
कुछ कार्यकर्ताओं ने यह भी कहा कि पहले भी कई मामलों में बिना तथ्यों की पुष्टि किए मीडिया रिपोर्टिंग से इस्लामोफोबिक माहौल पैदा हुआ था, जिससे समाज में गलत संदेश गया।

